Wednesday, November 4, 2009

गंगा को मैला किस ने किया ?


राजा भागीरथ अपने पूर्वजों को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए अथक परिश्रम कर गंगा को धरती पर लाये थे। उनके गणों को तो मुक्ति मिल गई मगर गंगा धरती पर आकर मैली हो गई। आज गंगा को प्रदूषण के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए कोई भागीरथ नही मिल रहा। यह कोई एक कहानी नही है बल्कि मानव इतिहास रहा है की मतलब निकल जाने के बाद इंसान हर किसी के साथ ऐसा ही बर्ताव करता है। या यूँ कहिये की मानव मन इस्तेमाल कर फ़ेंक देने की कला में महारत हासिल कर चुका है।
गंगा को मैला किस ने किया? यह लाख रूपये का सवाल है, जिस का जवाब सब जानते हैं मगर बोलना कोई नही चाहता मै भी खामोश रह सकता हूँ मगर खामोशी मेरी फितरत में नही है
मेरे मुल्क में गंगा को माँ की तरह पूजा जाता है। और जैसे एक बूढी माँ आजकल हमारे घर के किसी कोने में माजूर और लाचार कराहती तड़पती रहती है, ठीक उसी तरह का बर्ताव हम गंगा माँ के साथ भी कर रहे हैं। मुझे कहने में कोई गुरेज़ नही की मेरे मुल्क में माँ किताबो, कहानियों और कविताओं में ही अच्छी लगती है। आम ज़िन्दगी में उसकी अहमियत किसी काम चलाऊ आया या एक घरेलु नौकरानी से ज़्यादा कुछ नही। वो भी तब तक जब तक उसके हाथ पाँव चलते हैं या उसकी अंटी में आने दो आने होते हैं जिनके लालच में ही कभी कभी कभार उसे अपनी सेवा करवाने का अवसर मिल जाता है। वरना तो बूढी माँ के हिस्से में दुत्कार, जिल्लत और लाचारी के सिवा शायद ही कुछ आता है। जिन बच्चो को उसने अपना खून पिला कर पाला होता है वो हर पल उसका खून निचोड़ने पर आमादा रहते हैं। हकीकत यही है, भले ही हम अपने ग्रंथों, और किताबों के कितने ही हवाले देते रहें। दो चार ही खुशकिस्मत माँ होंगी जिनके नसीब में आराम और चैन लिखा होगा। गंगा माँ की कहानी भी अलग नही है। आम हिन्दुस्तानी माँ की तरह इस की किस्मत में भी औलाद की गन्दगी, पाप और बेहूदा कचरा धोना ही लिखा है।

जिस धर्म के हवाले से गंगा पूजी जाती है, वो ही इस का सब से बड़ा दुश्मन बन बैठा है। यकीन ना आए तो गंगा के उन किनारों तक घूम कर आइये जहाँ कल तक अमावस्या या पूर्णिमा स्नान के बहाने मेले लगे थे। लाखो की संख्या में लोग वहां नहाने पहुंचे और पीछे छोड़ आए अपनी गन्दगी और कचरा। इस कचरे को हटाने वाला अब कोई नही है। हम तो अपने पाप धो आए और गंगा मैया की फिल्मी आरतियाँ गाकर उस पर अहसान भी कर आए, मगर हमारी पिकनिक का खामियाजा बेचारी गंगा को महीनों भुगतना होगा।