
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि पूरी सभ्यता है। इस के दोनों तटों पर मानवीय जीवन का विकास हुआ । मगर लगता है की यही विकास विनाश का रूप लेता जा रहा है। गंगा की जैव विविधता खतरे में है और उसे बचाने की ज़िम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है।
गंगा के एकमात्र रामसर wetland क्षेत्र गोषित किये गए ब्रिजघाट से नरोरा तक के इलाके में प्रसिद्ध गंगा डोल्फिन प्रजाति की मात्र ४९ मछलियाँ ही बची हैं। कुल २६५९० हेक्टारे भूमि में फैले इस इलाके में पायी जाने वाली जीव जंतुओं की लगभग अस्सी प्रजातियों में से अधिकतर विलुप्त होने के कगार पर हैं। कानून को ताक पर रखकर श्रीमान मानव इस जैव विविधता को उजाड़ने में कोई कसर बाक़ी नहीं rakh रहा।
मगर हवा के एक शीतल झोंके की तरह इलाके की एक संस्था ने इस क्षेत्र में अनूठी पहल आज की। पर्यावरण सचेतक समिति के बैनर तले कुछ लोग इकठ्ठा हुए और ब्रिजघाट से लेकर नरोरा( बुलंदशहर) तक एक जन चेतना यत्र निकाली और लोगो को इस विषय में जानकारी दी। हालाँकि यह एक छोटा सा प्रयास था और इस से शायद कुछ भला होने वाला भी नहीं मगर यह विशिष्ट है। विशिष्ट इस लिए की कम से कम किसी ने तो इस बारे में सोचा।
2 comments:
nice
गंगा को सिर्फ देवी मान कर पुजने या स्नान कर अपने पाप धो लेने के अलावा आज चिन्ता इस बात पर की जानी चािहए जिस नदी को भगीरथ व उनके पूवर्जों ने कठोर तप के बाद पृथ्वी पर उतारा उसका अस्तित्व ही खतरे में है जिम्मेदार कौन?अगर आज भी जागरूक नही हुए तो कल कुछ न होगा ..........
गंगा के बारे में ज्यादा जानिए visit blog Ganga Ke kareeb
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