जोड़ियों का जुलूस हर साल नौ मुहर्रम को अमरोहा के अजाख़ाना शम्स अली खां मुहल्ला दरबारे कलां से शाम पांच बजे मजलिसे हुसैनी के बाद बरामद होता है। जोड़ियों का सबसे पहला जुलूस लगभग 1180 हिजरी में बरामद हुआ था। यह जुलूस जब मंडी चौब और जट बाजार के बीच में पहुंचा तो वहां स्थित मंदिर के पुजारी बाबा गंगानाथ ने जुलूस का स्वागत किया। उसी दौरान बाबा गंगानाथ ने अपने गले में पड़ा पीला पटका सबसे आगे चल रहे अलम (ध्वज) पर बांध दिया। इसके अलावा अजादारों के पैरों में पानी डाल कर श्रद्धा व प्रेम का इजहार किया।
तब से यह परंपरा बन गयी है और बाबा गंगानाथ मंदिर पर जोडि़यों के जुलूस का स्वागत होता है। मंदिर के पुजारी पीला पटका अलम पर बांधते हैं। इस दौरान अज़ादार मंदिर में प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद हिंदू भाई जुलूस में शामिल अराईश व रौशन चौकियों को कंधे पर रख कर जुलूस आगे बढ़ाते हैं।
तब से यह परंपरा बन गयी है और बाबा गंगानाथ मंदिर पर जोडि़यों के जुलूस का स्वागत होता है। मंदिर के पुजारी पीला पटका अलम पर बांधते हैं। इस दौरान अज़ादार मंदिर में प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद हिंदू भाई जुलूस में शामिल अराईश व रौशन चौकियों को कंधे पर रख कर जुलूस आगे बढ़ाते हैं।