Thursday, February 11, 2010

ये कैसी पत्रकारिता


पत्रकार रहते पत्रकारिता पर लिखना काफी मुसीबत भरा काम है। ये ठीक वैसा ही है जैसे तालाब में रहकर मगरमच्छ को चुटकी काट लेना। फिर भी आज मन नहीं मान रहा। लखनऊ के हमारे एक पत्रकार बंधू हैं जिनसे जुडी घटना का ज़िक्र अपने ब्लॉग पर ना कर पाऊं तो आत्मग्लानी मुझे परेशां करती रहेगी।


लखनऊ का एक प्रतिष्ठित हिदी/उर्दू दैनिक है जिस से एक बड़े धर्म गुरु का नाम भी जुड़ाहै। मेरे एक मित्र शायद इसी झांसे में आकर एक न्यूज़ चैनल की अपनी अछि खासी नौख्री को अलविदा कहकर चले गए।हालाँकि आम परजीवी पत्रकार की श्रेणी में ये बंधू कभी नहीं रहे और इसकी वजह शायद इनकी अछि पारिवारिक प्रष्ठभूमि भी है। इसीलिए आत्मसम्मान, शोच्नियता और मर्यादा जैसे विषयों पर ठीक ठाक बोल भी लेते हैं। aisi ही कुछ और वजह थीं जो उन्हें इस अखबार की और खींच कर ले गयीं। मगर वहां जाकर उनका भात्रम टूट गया।


उनके समाचार संपादक ने पहले ही दिन उनसे शराब की बोतल मांग ली। अगले दिन से पार्टी और लाइफ स्टाइल से जुडी ख़बरों पर संपादक महोदय खुद जाते और उनकी नोटिंग पर मेरे मित्र समाचार लिखा करते। बात आगे बढ़ी तो मेरे मित्र को शबाब का प्रबंध करने को कहा गया। मित्र उखड गए और जा पहुंचे प्रबंधक के पास। मगर ये क्या? यहाँ तो पासा ही पलट गया। प्रबंधक ने उल्टा हड़का दिया और आगे से शिकायत न करने की चेतावनी भी दे दी। कुछ दिन अपमान सह कर मित्र ने अख़बार को अलविदा कह दिया।


आजकल नया काम तलाश रहे हैं। ये एक छोटी सी बानगी भर है। देश को दिशा देने की ज़िम्मेदारी जिन लोगो पर है वो लोग दिशा हीन हैं। ऐसा नहीं की इस हमाम में सब नंगे हैं। अछे लोग कम नहीं और आदर्शवादिता का भी अंत नहीं हुआ है मगर बहुलता ऐसे ही लोगो की है। दलों की एक पूरी पीढ़ी पत्रकारिता की और खिंची चली आती है। नेतागिरी के पिटे हुए, वकालत में लूटे हुए , और भूमाफियागिरी के भगोड़े सबको यहाँ पनाह है। एक पूरा तंत्र है जो पनप रहा है। ज़रुरत है अच्छे लोगों की जो इस गौरवशाली पेशे का चीरहरण होने से रोक सकें.

1 comment:

Arun sathi said...

जरूरत तो चाहे जो हो पर भाई साहब कम से कम ब्लॉग पर तो आप उस कथित संपादक को नंगा कर ही सकते है। थोड़ा हिम्मत करिये और लिखमारिए