चार दिन की लगातार बारिश ने लोगों को परेशान कर दिया। और लोगों को भी क्या, सच कहिये तो खुदा की ख़ुद की परेशानी बढ़ा दी। हर तरफ़ से एक ही आवाज़, 'भगवान् बस भी करो'। अल्लाह भी परेशान, ये आदमी है या कुछ और? अरे कोई जुबां भी है इसकी? अभी कल तक तो इन सबकी साझा आवाज़ आ रही थी बारिश कर दो, और अब? कितना करह रहे थे सब। कुछ भी कर दो इनको सुकून ही नही मिलता।
अभी दिन ही कितने हुए हैं। हर तरफ़ से त्राहि माम, त्राहि माम। हर एक का यही उलाहना, खुदा क्या अब मार कर ही दम लेगा। उलाहना आज भी वही है, बस वजह बदल गई है। कल जो आवाजे बुलंद होकर बारिश के लिए दुआ कर रहे थे वही इसके थमने को बेकरार हैं। अरे अभी हुई ही कितना है। मौसम विभाग भी अभी इसे औसत से २६ प्रतिशत कम तक मान रहा है। बंद कर दूँ तो फिर रोते कराहते आयेंगे, "या अल्लाह बरसा दो, मेघ दो पानी दो..."।
आम आदमी की कराहट तो समझ आती है, वो भी तो दिल दिल में दुआ कर रहे हैं जिन्हें कुदरत के होने में ही शक है। और वो भी जो हकीकत में शैतान के पथ प्रदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं खुदा से ज़्यादा ही मन्नतें कर रहे हैं। इनका दर्द ज़्यादा बारिश से जनजीवन की अस्तव्यस्तता नही बल्कि कुछ और वजह से है। इन्हे इस बात से मतलब नही के बरसात में घर टपक रहा है, या फिर गिर भी सकता है। इनके महल में तो बरसात की सीलन भी नही पहुँचती। फिर ये डर किस चीज़ का?
अब आप भी जानने को ज़्यादा जिज्ञासु न हों मई बता ही देता हूँ। ये देखने में हम आप जैसे ही हैं मगर इनके जीवन में जो उतार चढाव आते हैं उनके सरोकार ज़रा जुदा हैं। इन्हे फ़िक्र है है के बारिश अगर यूँ ही बरसती रही तो सूखा कैसे पड़ेगा? अरे ये क्या ये तो चावल की फसल को बहुत ज़्यादा फायदा हो गया। इनका दिल इस बात से भी डूब रहा है की इस बारिश से दाल की फसल अच्छी हो जाएगी।
जी हाँ आप ठीक समझ रहे हैं। ये सटोरियों की दास्ताँ सुनाई जा रही है। लोगो के ग़म से इन्हे खुशी हासिल होती है। इन्हे इस बात से कोई सरोकार नही की चावल अगर दो रूपये किलो महंगा होगा तो कई परिवारों में लोगों को आधे पेट खाकर ही सोना होगा। दाल अगर नब्बे रूपये किलो
बिक रही है तो बिके । इन्हे क्या? इसी में तो इनकी खुशी है। इस से देश की दो तिहाई आबादी का बजट बिगडेगा मगर इनका सेंसेक्स उपर उठता ही जाएगा। इन्होने जो माल अपने गोदामों में जमा कर रखा है उसे दीमक भी लग जाए तो कोई फ़िक्र नही। एम् सी एक्स पर लगाया हुआ सट्टा उसकी ना सिर्फ़ भरपाई कर देगा बल्कि इन्हे बाज़ार की बुलंदी तक ले जाएगा।
जब इतने स्वार्थ जुड़े हों तो फिर फ़िक्र लाजिमी है। सो अब पेड दुआओं का दौर शुरू हो गया है। बारिश रोकने के लिए भगवन को रिश्वत आफ़र की का रही है। हवन वगैरा का सहारा लिया जा रहा है। पंडे पुरोहित भरोसा दिला रहे हैं, करोडो लोग भूके मरें तो मरें, किसान बरबाद हो तो हों, कोई क़र्ज़ में डूब कर आत्महत्या करे तो करे। यजमान आप फ़िक्र न करें। आप बस खर्च करते जाइए। भगवान् को हम रोक लेंगे। अगर बारिश आपका कारोबार डूबा रही तो हमारा क्या होगा। फिर आम आदमी की ज़िन्दगी में भी तो बरसात कीचड़ घोल रही है। भले हो वो नगर निगम के सौजन्य से हो। इसी बहाने आम आदमी के दर्द भी तो आप बाँट ही लेते हैं।
क्या कहा? शैतान और रहमान हमेशा साथ रहते हैं? शायद सटोरिया ठीक ही कह रहा है।
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