Friday, October 9, 2009

राष्ट्रीयता, धर्म और हम!



राष्ट्रीय राजमार्ग 24 अब चार लेन का है और जल्दी ही 6 लेन का भी हो जाएगा। इतना ही नही सड़क के बीच में एक हरित पट्टी भी है जो कम से कम 5 फीट चौडी तो है ही। ज़ाहिर है इतने सब के बाद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को वाया मुरादाबाद लखनऊ से जोड़ने वाले इस राजमार्ग पर यात्रियों की मुसीबत ख़त्म हो जानी चाहिए थी। मगर ऐसा हुआ नही है।
सरकार का दावा था की चार लेन का बनने के बाद इस सड़क मार्ग से लखनऊ की दूरी कम से कम चार घंटा कम हो जाएगी और रोजाना लगने वाले जाम से आम आदमी को निजात मिल ही जाएगी। मगर हाल ये है कि इतने सब के बावजूद दिल्ली से ब्रजघाट पर गंगा का पुल पार करने में ही चार घंटे से ज़्यादा लग जाते हैं। इतना ही नही इस राजमार्ग पर महीने की हर अमावस्या और पूर्णिमा को रूट दाइवर्ज़न लाजिमी है। जिसके चलते यात्रियों को कम से कम ७० किलोमीटर ज़्यादा का चक्कर लगाकर आना पड़ता है।
इस के अलावा शिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा मेले का एक महीना और कई अन्य पर्व जिन पर गंगा स्नान परम्परा बन गया है आम यात्रियों के लिए मुसीबत लेकर ही आते हैं। रही सही कसर सावन में पूरी हो जाती है जब हर सोमवार से एक दिन पहले और एक दिन बाद तक के लिए हापुड़ से गजरौला के बीच राजमार्ग पर परिवहन संचालन पर स्थानीय प्रशासन को रोक लगनी पड़ती है।
इस सब के पीछे राजमार्ग पर दुर्घटना और उसके बाद बवाल की आशंका से प्रशासन के पसीने छूटना है। अभी पिछलेसाल ही की तो बात है। एक कांवरिये के कार की टक्कर से घायल होने के बाद जो बवाल मचा वो 6 ट्रक और तीन राज्य परिवाहन निगम की तीन बस जलने के बाद ही शांत हुआ। इसके अलावा दर्जनों वाहनों के शीशे तोड़ दिए गए। एक अन्य दुर्घटना के बाद राजमार्ग पर जमकर बवाल हुआ। लोगो ने जाम लगा दिया और कई वाहनों पर अपना गुस्सा उतारा।
कुल मिलाकर धार्मिक प्रयोजन से इस राजमार्ग पर साल में लगभग सवा सौ दिन यातायात ठप्प रहता है। इस से जो बाक़ी बचता है उसकी कसर किसान यूनियन के आए दिन लगाए जाने वाले जाम, राजनैतिक दलों का गुस्सा, और आम आदमी की झुंझलाहट पूरा कर देती है. सबके गुस्से का नजला इस गरीब राजमार्ग पर ही उतरता है।
कायदे में होना तो यह चाहिए था की 4 लेन हो जाने के बाद कम से कम आधे राजमार्ग पर तो ट्रैफिक चल ही सकता था। कांवरिये या आम श्रद्धालु हरित पट्टी के रूप में बनी विभाजिका के एक तरफ़ आराम से जा सकते थे क्योंकि यह हाईवे की पुरानी चौडाई से अब भी ज्यादा है। मगर ऐसा हुआ नही।
हम लोग पश्चिम में जाते हैं तो वहां बगैर किसी की टोक के एक सभ्य शहरी का सा बर्ताव करते हैं मगर अपने देश में हम पर कोई कानून लागू नही होता। खासकर जहाँ हम झुंड में आए वहीं बंदरों सरीखा बर्ताव कर साबित करते हैं कि हम अपने पूर्वज बन्दर से मिले वंशानुगत गुणों को नही भूले हैं। राष्ट्र भक्ति पर हम घंटो बोल सकते हैं। तथाकथित सभ्यता और सस्कृति के लंबे लंबे भाषण भी हमें याद हैं। मगर राष्ट्र की प्रगति में हमारी दिनचर्या, धर्म और निजी हित सब से ज़्यादा आड़े आते हैं। इतने पर भी हम ज़ोर से नारा लगाते हैं, "मेरा भारत महान। "

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर बात कही आप ने अपने लेख मै, वेसे तो होना चाहिये की इन राज मार्गो( हाईवे) पर पेदल चलना सकत मना होना चाहिये, फ़िर गंगा स्नान या जो भी अन्य त्योहार हो उसे राज मार्गो से दुर रखना चाहिये, ओर इस कावड यात्रा को जंगल के रास्ते या सडक से दुर से ले कर जाने की चेतावनी होनी चाहिये, यह हाई वे कारो, बसो ओर ट्रको के लिये है जानवरो के लिये नही.
धन्यवाद

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

भाटिया साहब की बात से पूरी तरह सहमत !