आरुशी तलवार हत्याकांड में एक बार फिर सी०
बी० आई० के हाथ जांच में निराशा ही लगती दिख रही है। जिस मोबाइल फ़ोन के दम पर खबरिया चैनल जाँच एजेंसियों के हाथ कातिल तक पहुँचने का दावा कर रहे थे वो किसी काम का भी नही निकला। एक तो सोलह महीने बाद किसी फ़ोन से डाटा रिट्रीव कर पाना लगभग नामुनकिन है दूसरे इस फ़ोन में जा एजेंसियों के हाथ असली डाटा कार्ड लगा ही नही। बल्कि जिस रामफूल से ये मोबाइल बरामद किए जाने का दावा किया गया था उस के मुताबिक उसके पास जब यह फ़ोन आया तो उसमे कोई कार्ड लगा ही नही था॥ उस के मुताबिक जब यह फ़ोन उसकी बहन को पाया तो इस फ़ोन में ना सिम कार्ड था और ना ही मेमोरी कार्ड। वो मोबाइल चलाना जानती ही नही सो उस ने बेकार समझ कर ये फ़ोन उसे दिया था, इस उम्मीद में की शायद बाही के किसी काम का हो। फिलहाल तो एक बार फिर इस बहुचर्चित केस की गुत्थी उलझती नज़र आ रही है।
मगर इस समय का सब से बड़ा सवाल ये है की इस केस की गुत्थी उलझती जा रही है या उलझाई जा रही है ? इस सवाल का जवाब पाना आसान नही मगर हालत का इशारा तो यही है के कोई कोई न कोई इस मामले को उलझाए रखना चाहता है। डाक्टर तलवार खबरिया चैनलों पर दावा कर रहे हैं के उनकी बेटी का क़त्ल उनके नौकरों ने ही किया है। हो सकता है उनका दावा सच हो मगर जिस तरह इस हाई प्रोफाइल मामले में लगातार सबूतों से छेड़खानी और पुलिस का दोहरा चेहरा सामने आ रहा है उसे देखकर तो उनके दावे पर यकीन मुश्किल हो जाता है। फ़िर सवाल ये भी है के उनके नौकर हेमराज का कातिल कौन है और उसका आरुशी के क़त्ल से क्या वास्ता?
इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल है के लो प्रोफाइल नौकर जांच एजेंसियों को इतने दिन तक गुमराह कर सकते हैं। अभी तक आरोपी बनाए गए लोगों में ख़ुद डाक्टर तलवार को छोड़ कर किसी और की इतनी हैसियत नही है की वो किसी तरह की जोड़ तोड़ कर सबूतों की अदला बदली करा दे। ख़ास कर जैसे फोरेंसिक जांच के लिए भेजे गए आरूषी के D.N.A सैम्पल के साथ छेड़खानी की बात सामने आई है उसे कोई लो प्रोफाइल आदमी अंजाम दे ही नही सकता।
जिस तरह आम आदमी से पुलिस का अदना सा सिपाही पेश आता उसे देखकर तो कोई यकीन कर ही नही सकता के दो चार मामूली नौकर मिलकर बार बार जांच का रुख बदल सकते हैं। जिस रामफूल से मोबाइल मिला है वो भी कोई तुर्रम खान नही है। उसकी बहन घरो में बर्तन साफ़ करती है तो वो ख़ुद एक चपरासी है।
फिलहाल जो हालत हैं उनका इशारा है के जाच के लिए हाथ पैर मार रही एजेंसियां तब तक कामयाब नही होंगी जब तक छेड़खानी करने वालो के साथ सख्ती से पेश नही आती।
इतना भी तय है के आरूषी के क़त्ल का सुराग नॉएडा के जलवायु विहार की उसी चार दिवारी में क़ैद है जिसमे उस ने आखिरी साँस ली। उस के बाहर खुक्च ढूंढ़ना ख़ुद पुलिस और जांच एजेंसियों पर सवालिया निशाँ लगाता रहेगा।
2 comments:
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इस मामले का हल सीबीआई तो क्या एफ़बीआई भी नहीं तलाश सकती । अब तो एक ही रास्ता बचा है कि इस केस में दिलचस्पी रखने वाले "आरुषि को इंसाफ़" ट्रस्ट बनायें , लोगों से एक-एक रुपए चंदा लेकर कोई काबिल डिटेक्टिए को कातिल का पता लगाने का ज़िम्मा सौंपा जाए , ताकि रसूखदार कातिल बेनकाब हो सके ।
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