क्या एक कुलपति को अधिकार है कि वो लड़कियों के कमरे में बगैर अनुमति लिए घुस जाए ? या फिर लड़किओं के हॉस्टल का समय, बे- समय दरवाज़ा खटखटा दे? कोई माने ना माने, मगर अलीगढ मुस्लिम विश्विद्यालय के कुलपति को इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की वो जिस कमरे में वह घुस रहे हैं वो किसी छात्र का है या छात्रा का।
कुलपति आजकल अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों को दरकिनार करते हुए विश्विद्यालय में कानून का राज स्थापित करने में लगे हैं। उनके मुताबिक अनुशासन के तराजू में लड़के और लड़कियां सब बराबर हैं। अपनी इसी मुहिम के तहत पिछले हफ्ते उन्होंने लड़किओं के सबसे बड़े छात्रावास, इंदिरा गाँधी हॉल का औचक्क निरिक्षण किया। कुलपति को वह कोई अनियमतता मिली या नही कोई नही जानता मगर ख़ुद कुलपति एक बार फिर विवाद में ज़रूर आ गए हैं। लड़कियों का आरोप है के उनके कमरे में कुलपति बिना किसी पूर्व सूचना के किसी कमांडो की तरह घुसे चले आए। कायदे में यह काम कोई महिला वार्डेन करती तो समझ में आता है। छात्रों के कमरे में इस तरह उनका प्रवेश ग़लत एवं मर्यादा के ख़िलाफ़ है। छात्राओं ने कुलपति पी० के० अब्दुल अजीस के इस क़दम का विरोध किया तो निलंबन की धमकी देकर उन्हें खामोश कर दिया गया।
इस सम्बन्ध में विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसमे विवाद जैसा कुछ नही। जबकि नाम न छपने कि शर्त पर छात्राएं कह रही हैं कि कुलपति अमर्यादित व्यवहार कर रहे हैं और देर, सवेर लड़किओं के हॉस्टल में घुस आना उनकी नियत पर सवाल खड़े करता है।
बहरहाल पहले ही अपनी डिग्री कि प्रमाणिकता, भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद के आरोप झेल रहे वी० सी० के खिलाफ उनके विरोधियों को एक अस्त्र और मिल गया है। दूसरी तरफ़ ए० एम० यू० के दामन में एक और विवाद का छींटा पड़ा है।
4 comments:
जी बिलकुल गलत है ये तो...
भाई कुलपति को किसकी अनुमति चाहिए ? यह विवाद दुष्ट लोगों द्वारा अपना निजी उल्लू सीधा करने के लिए उठाया गया है !
तब तो बड़ा बवाल हुआ होगा अलीगढ़ में। हालांकि अखबारवाले भरसक न छापने का प्रयत्न किए होंगे। अमुवि से जुड़ी नकारात्मक खबरें छापने में तो उनको पसीना आ जाता है। एक तो पिटाने और बवाल झेलने का डर, दूसरे सलाना मिलने वाला विज्ञापनी माल। क्या वही वीसी साहब हैं खिचड़ी दाढ़ी वाले एकेडमीसियन महोदय साउथ वाले। वह तो नेक और ईमानदार हैं। दरअसल, वहां लोग ब्यूरोक्रेट को ही वीसी के रूप में पसंद करते हैं। उनका मानना है कि उसकी सख्ती ही अमुवि को सुचारु ढंग से चला पायेगी। एक अकेडमीसियन लिबरल होगा तो व्यवस्था गड़बड़ा जायेगी। हालांकि अंदरखाने इससे उनकी तानाशाही वाली सोच झलकती है। दूसरी बात यह कि ब्यूरोक्रेट आमतौर पर जीवन भर जाल-फरेब किया रहता है। इसलिए अमुवि इंतजामिया को उसके साथ अपना उल्लू सीधा करने में कोई परेशानी नहीं होती है। लेकिन यह कार्यवाही बड़ी सफाई और जी!जी! करके तथा साथ दमदारी का पुट लिए संपादित की जाती है।
अरे भैया !! कोई वी सी यह कर रहा है ; तो इसमें काहे की बुराई ?
होस्टल्स में अनुशासन बनाए रखने में कौन सी खराबी ?
भाई !! लगता है अच्छी चुगली कम ही मिलेगी??????
हाँ आज के जमाने के चलन को देखते हुए एक थो महिला वार्डेन साथ ले लेते , तो ज़रा और अच्छा होता !!
बाकी तो खबर कितनी सच्ची है ?
जय राम जी की!!
फुरसतिया जी ने सही कहा यह चिट्ठाकारी तो निन्यानवे का फेर है.......और हम पड़े 99 के चक्कर में
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