Saturday, October 10, 2009

चिट्ठाजगत को बचाइए प्लीज़ !!!


क्या हम लोग आज़ादी के मायने जानते हैं? ये एक ऐसा सवाल है जिस से हम आजादी के बासठ से ज़्यादा साल गुज़र जाने के बाद भी जूझ रहे हैं। जवाब भी सीधा सा है। हम आज़ादी के साथ जीना सीख गए गए हैं और इस हद तक आजाद हैं के अब दूसरों की आज़ादी में खलल पैदा करने लगे हैं। कर्तव्यबोध हमारे जनमानस में है ही नही। हाँ, अपने अधिकारों की लम्बी चौडी सूची हम हर समय अपनी जेब में धरे घुमते हैं।
अब चिट्ठाजगत को ही लीजिये। यहाँ आजकल कुछ दूषित मानसिकता के लोग अपने निजी वैमनस्य निकलने में जुटे हैं। कहने को चिट्ठाजगत बुद्धिजीवियों की एक ख़ास प्रजाति का प्रतिनिधित्व करता है मगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम काफ़ी आगे निकल गए हैं। इस हद तक, की अब हम इस आमधारणा को बल देते लगते हैं की आम एशियाई मूल के व्यक्ति को डंडे का शासन ही रास आता है। और इस धारणा को भी, कि भारतीय बगैर कठोर कानून और नियंत्रण के पाकिस्तानी या बंगलादेशी से बेहतर व्यवहार नही करते।
बुजुर्ग याद करते हैं कि किस तरह लोग इमरजेंसी के दिनों में अनुशासन के साथ रहते थे। आमतौर पर सरकारी दफ्तरों से गायब रहने वाले बाबू भी अप्रत्याशित तौर पर समय से अपनी कुर्सी पर नज़र आते थे। इसी तरह पाकिस्तानियों के लिए भी कहा जाता है कि जनरल जिया के दौर में वो बहुत अनुशासित थे। मुशर्रफ़ के सख्त रवय्ये वाले दिनों में भी पाकिस्तानी बेहतर व्यवहार करते थे। इतना ही नही हम एशिया वासियों के व्यवहार कि असली परीक्षा सख्त कानून वाले देशों भी होती है जहाँ जुर्माने या सज़ा के डर से हम सब से ज़्यादा मर्यादित व्यवहार कि होड़ करते दिखते हैं।इस पर शोध किया जा सकता है कि आम भारतीय या पाकिस्तानी को विदेशी हवाई अड्डे पर उतारते ही ऐसा क्या हो जाता है कि वह कानून का अक्षर्तः पालन करता है। और हमारी मिटटी में ऐसा क्या है कि यहाँ आकर बड़े से बड़े कानून कि धज्जी उडाने में एक पल की भी चूक नही होती।
चिट्ठाजगत वाले भी शायद किसी कड़े नियामन कानून के इंतज़ार कर रहे हैं। और इंतजार क्या वो तो किसी कडे कानून को आमंत्रण दे रहे हैं। यकीन न आए तो ज़रा भाषा पर गौर करें। एक मशहूर चिट्ठे पर आजकल धर्म युद्घ छिड़ा है।यहाँ दो चार योद्धा अपने गाली पराक्रम के सहारे पाठकों को प्रभावित करने कि कोशिश कर रहे हैं। एक अन्य महाशय तो गलियों के साथ दो दर्जन कचरे चिट्ठे भेजकर चिटठा स्वामी हो हड़का रहे हैं। ये तो बस बानगी भर है। कुछ चिट्ठे तो अश्लीलता कि सभी सीमाएं लाँघ चुके हैं। कुछ लोग टी० आर पी० की ज़ंग में ऐसा उलझे हैं कि टटपूंजिया खबरी चैनलों को भी मात करते नज़र आते हैं।
बेहतर होगा कि हम लोग स्वनियंत्रण कर बेहतर उदाहरण पेश करें। वरना वो दिन दूर नही कि किसी नियमन आयोग का चौकीदार हमारे सर पर बैठा दिया जाएगा। तब सिवाए पछताने के कुछ हासिल नही होगा । उस से पहले ही हम चिट्ठाजगत के कचरे को साफ़ कर एक बेहतर माहौल बनाएं।शायद ये हम सभी के हित में है।

2 comments:

Anonymous said...

bhart me kanun vvstha ke bare me itna hi khege-- yatha raja tatha prja

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