Tuesday, June 9, 2009

लालू जी को गुस्सा क्यों आता है ?


लालू जी नाराज़ हैं पर अपनी नाराजगी छिपा नही पाते। दिल में एक टीस सी है। लाख दबाना चाहते हैं मगर दर्द है की जुबां पर ही जाता है। अब जुम्मा जुम्मा चार दिन ही की तो बात है। ठाट से सत्ता के गलियारों में दनदनाते फिरते थे। उनकी रेल थी की बगैर सिग्नल दस जनपथ से लेकर रेस कोर्स , नार्थ एवेन्यू से साउथ एवेन्यू, यहाँ तक कि पटना से बडौदा हाउस तक क्या मजाल जो कोई रोक ले।
लोग प्यार से मैनेजमेंट गुरु तक कहने लगे थे। गुरुगिरी का खुमार इतना चढा कि रेल दफ्तरों तक के बाहर सुबह सुबह पहुँच जाते थे छड़ी लेकर। अब ये कहाँ कि तुक हुई जी? सरकारी बाबू हैं दस से पहले भी कैसे सकते हैं दफ्तर? ट्रेन का टाइम सीधा हुआ नही इन साठ साठ साल पुराने बिगडे नवाबों को कैसे सीधा कर सकते थे। भाई बनिए को मुनाफे से आगे सोचना ही नही चाहिए। जनता है उनकी तनख्वाह देने के लिए।
इस से भी दिल नही भर रहा था के लगे सब को डांटने डपटने। कभी किसी नेता को डपट दिया, कभी किसी कारिंदे को। अब पत्रकार आपके रेल मंत्रालय के कर्मचारी तो थे नही। सब को डांटने डपटने के फेर में , जाने अनजाने हर तरफ़ दुश्मन खड़े कर लिए। अब क्या पता कांग्रेस में कौन कौन जला भुना बैठा था ?
अब सत्ता कि बंदरबांट में आपकी हिस्सेदारी नकार दी गई, या कहिये कि जनता ने आपको पैदल करा दिया तो क्या हो सकता है। बुरे वक्त में ऊंट पर बैठे आदमी को कुत्ता काट कर भाग जाता है , आप तो अब अपने प्रिय वाहन भैसे पर भी नही हैं। अब संसद में आप कितना डांट डपट दीजिये आपकी हैसियत कोई किसी विदूषक से ज़्यादा मानने को तैयार शायद ही हो। आप संसद में बोलते हो तो सारा सदन हँसता है। आप सदन में कह रहे थे कि अपने स्वाभिमान से समझौता नही करूँगा, तब भी सदन हंस ही रहा था। मगर बातों में तो दम था। कोई माने मै तो मानूंगा।
मुझे तो आप से काफ़ी सहानुभूति है मगर मेरी हैसियत ही क्या है। एक अदना सा पत्रकार सलाह से ज़्यादा कुछ दे ही नही सकता। संपादक किसी लायक बन्ने ही नही देता और अच्छे वक्त में आप जैसे लोग कभी मुड़कर देखना पसंद नही करते। अब तो हम और आप एक जैसी ही हालत में हैं और साथ बैठ कर आंसू बहाने से ज्यदा के रहे भी नही।
वैसे समय बड़ा बलवान है। राजनीति तो वैसे भी सांप सीढ़ी, या कहिये कि झूले के समान है। आज निचे हैं तो कल ऊपर भी आएंगे। अब वक्त ख़राब है तो होमवर्क ही कर लो और आने वाले कल कि तय्यारी करो। मगर इतना याद रखना जो तम्हारे साथ हो रहा है उसे दोहराना मत। वरना दिन के बाद फिर रात है।

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