Saturday, June 13, 2009

पानीपत का तीसरा , चौथा और पांचवा युद्घ : अर्थार्थ भाजपा की कहानी


भाजपा में घमासान मची है। हारी हुई सेना के सेनापति एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। दल साफ़ तौर पर दोगुटों में बटा नज़र आ रहा है। एक दल जड़ो की और वापसी का नारा दे रहा है तो दूसरे को विचारधारा में ही खोटनज़र आ रहा है। कुछ सेनानी मात्र संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संग के सर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं तो कुछ तोसेनापति में ही कमजोरी नज़र आ रही है। बहरहाल दल अपनी एतिहासिक हाल के कारण तलाशते तलाशतेइतिहास दोहरा रहा है । ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नही की इस सेना के सेनापति अपनी सेना को एतिहासिकबनाते बनाते इतिहास के गर्त में धकेल ही देंगे। राजनीती में हार और जीत लगी ही रहती हैं मगर भाजपा के लिए इस बार मामला अलग ही था। दल ने इस बारन सिर्फ़ आम चुनाव में पूरी ताक़त झोंक दी थी बल्कि अगले चुनाव का भी बिगुल बजा दिया था। मगर जीत नमिलनी थी और न मिली। १००८ महागुरु, बाबा श्री लालू प्रसाद यादव जी की भविष्यवाणी सत्य साबित हुई। उन्होंने तो पहले ही कह दिया था की आडवानी जी की कुंडली में प्रधानमंत्री का योग ही नही है, मगर किसी नेउनकी बात नही मानी। ख़ुद मुरली मनोहर जोशी जी, जो अपने ज़माने में ज्योतिष शिक्षा के सबसे बड़े हिमायतीथे उनकी बात झुठलाते रहे। मगर न ज्योतिष झूठा था और न बाबा। हाँ इतना ज़रूर है की दूसरो का भविष्य बांचतेबांचते बाबा जी को ख़ुद अपनी सुध न रही और डूब गए। आम चुनाव भाजपा के लिए पानीपत के दूसरा युद्घ साबित हुए। पानीपत के बाद मराठ सती का जिस तरह क्षरण हुआ था उसी रास्ते पर भाजपा भी चल निकली है। आसार तो चुनाव में ही नज़र आ गए थे। दरअसल इसदल में सेना कम और सेनापति ज़्यादा थे, अंहकार में डूबा एक एक सेनापति क्षत्रु को नही अपने ही साथी की लुट्या डुबाने में व्यस्त था।लोह पुरूष के लोहे के कवच को उनके नायब ही चुराकर बेचने की जुगत में थे। अब प्यार तो होना हो था...माफ़ करना बंटाधार तो होना... । भाजपा का डूबना अब तै है क्योंकि अब न यहाँ विचार हैं और न विचार धारा। विचार बूढे और दकियानूसी होचुके हैं और विचारधारा आदिमयुगीन, विद्वंसक, और विनाशक। भारत जैसे उन्नतिशील, सहनशील औरविचारशील देश में इस सब का अब कुछ काम नही। भाजपा के सामने दो ही रास्ते हैं। पहला की वह अपना चोल हीनही आत्मा भी बदले। विनाश की नही विकास की बात करे।और सिर्फ़ बात ही नही करे, जिन राज्यों में सत्ता में हैवहां अमल में भी लाये। दूसरा रास्ता है की वो अपनी जड़ो की तरफ़ लौट जाए और इतिहास बन जाए। आखिर इतिहास ही तो ख़ुद को दोहराता है।

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