
गंगा नदी से मात्र दस किलोमीटर दूर, राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या २४ पर ओद्योगिक नगरी के रूप में विकसित होता एक छोटा सा कस्बा है गजरौला। यहाँ के लोग अक्सर दावा करते हैं कि मुंबई के बाद शायद गजरौला ही है जो कभी नही सोता। आप रात को किसी भी समय यहाँ उतर जाइये, जनजीवन अपनी रफ्तार से ही दौड़ता हुआ मिलेगा।
गंगा के अलावा आस पास से दो तीन नदियाँ और भी गुज़रती हैं। अब नदिया भी क्या , यूँ कहिये कि दो तीन नाले भी गुज़रता हैं। वैसे जो हालात हैं उन्हें देखते हुए तो यही लगता है कि वो दिन दूर नही जब पवित्र गंगा मय्या के विषय में भी यही कहा जाएगा।
इन दो तीन नदियों में से एक छोटी सी बगद नदी भी है। एक ज़माने में ये भी काफी पूजनीय थी। लोग यहाँ भी स्नान कर लिया करते थे, मगर अब नही करते। हालाँकि कर सकते हैं। यहाँ का पानी गंगा से थोड़ा बहुत ही ज़्यादा ज़हरीला होगा। थोड़ा सा काला ज़रूर है मगर है अभी पानी ही। हो भी क्यों ना? अब नदी ही तो है, इन्सान तो नही जो आँख का पानी भी मर जाए, सो बेचारी आंसू बहाती रहती है। अब यही आंसू उस में आक़र गिर रहे ओद्योगिक अपशिष्ट के साथ मिलकर आस पास कि फसल को भी जला देते हैं तो इसमे बेचारी बगद का क्या दोष? उसे तो हर हाल में अपनी बेबसी पर आंसू बहाना ही है।
हम हिन्दुस्तानी पूरी दुनिया पर छा गए हैं। विकास कि रफ्तार में पूरी दुनिया को पीछे छोडे जाते है। मगर इस के साथ साथ अपनी जड़ो से भी हम कट गए लगते हैं। कुछ डूब रहा है तो डूबने दो, कुछ मिट रहा है तो मिटने दो, हमें क्या? अरस्तु ने भी क्या कुछ ग़लत कहा था, मध्यम वर्ग के बारे में कि यह दुनिया कि सबसे ज़्यादा भावहीन जमात होती है। मकियावेली ने भी कुछ कुछ ऐसे ही विचार अपने दर्शन में पेश किए। कुल मिलकर हमारे देश में मध्यम वर्ग कि भरमार है। ग़रीब के पास साँस लेने का अधिकार नही और इस वर्ग के पास साँस लेने की फुर्सत नही। फिर बगद जैसी दम तोड़ती नदी के बारे कोई क्या सोचे। कुछ दिन बाद यह काला नाला अपनी मौत आप मर जाएगा।
चलो अच्छा ही होगा। गजरौला से लेकर बदायूं तक के किसानो कि फसल, पशु और ख़ुद उनकी ज़िन्दगी तो दम नही तोडेंगे। वरना तो आज बगद इन दो जिलो ( ज्योति बा फुले नगर और बदायूं) के लोगो के लिए मौत का ही नाम है। इस रोती कराहती बुढिया का बोझ इसके बच्चों से नही उठाया जाता। ये अब मर ही जाए तो बेहतर।
मगर इस सब के बाद याद रखना अगली बारी उस बुढिया कि है जिसे हम गंगा मय्या के नाम से जानते हैं।
3 comments:
bahut hi badhiya.......kahane ko shabda nahi hai
बहुत बढिया आलेख लिखा है। आप सही कह रहे हैं यदि यही हाल रहा तो गंगा भी मरती जाएगी। इस ओर ध्यान देना बहुत जरूरी है। लेकिन किसी को फुर्सत ही नही है।धीरे धीरे सभी नदियों का यही हाल होता जा रहा है।
क्या कहूँ मित्र...कल से नदियों की दुर्दशा पढ़ ही पढता चला आ रहा हूँ...समझ में नहीं आता की आखिर सरकार कर क्या रही है..अब तो गंगा को राष्ट्रीय नदी भी घोषित कर दिया गया है...मगर वो भी सिर्फ औपचारकता भर बन कर रह गया है.....
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